Hindi Poetries | Hindi Poems | हिंदी कविता | Earth day


अगर आप हिंदी में कविताएं पढ़ना पसंद करते हैं, तो मुझे यकीन है आपको मेरी लिखी ये कविता पसंद आयेगी।

ये कविता मैंने अर्थ डे पर लिखी थी और उसके साथ साथ कोरोना काल में हो रही घटनाएं जैसे ऑक्सीजन की कमी को लेकर आपसे कुछ साझा करने की कोशिश रही है।

वैसे तो ये दुनिया बहुत बड़ी है, और बहुत खूबसूरत है, लेकिन पिछले कुछ सालों से इंसानी गतिविधियों ने यहां का माहौल खराब कर दिया है। आज हम जिस प्रकार की भी स्थिति में हैं कहीं न कहीं उसके जिम्मेदार हम सभी हैं। हमें पहले से सब पता था की दुनिया में चल रही गतिविधियों का क्या असर होगा मगर फिर भी हम अंधे-बहरे बने इसे और बरबाद करते गए, और पेड़ काटते गए, गंदगी करते गए, फैक्ट्री पर फैक्ट्री और इंडस्ट्री खड़ी करते गए। हमें साफ साफ पता था की भविष्य में इसका असर बेहद खौफनाक और डरावना होगा मगर फिर भी किसी पर कोई असर नहीं हुआ। 

देखा जाए तो कहीं न कहीं इन सब आपदाओं और परेशानियों का कारण हमारा जरूरत से ज्यादा प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना है। अभी भी वक्त है की हम खुद को और इस दुनिया को आने वाले भयंकर विनाश से बचा सकते हैं। 

जिस प्रकार प्रकृति हमें पालती पोस्ती और हमारा खयाल रखती है, हमारी जरूरत है की हम भी उसका उसी प्रकार ध्यान रखें और सुरक्षा करें क्योंकि अगर प्रकृति ही नहीं बचेगी तो जीवन कैसे बच सकता है।

मैं उम्मीद करती हूं की आपको यह कविता पसंद आए और आप मेरी इस कविता का उद्देश्य और मतलब समझ पाए।

Hindi Poetry | हिंदी कविता

"जैसा बोया है, वैसा ही तो पाओगे"

जैसा बोया है, वैसा ही तो पाओगे,

नफरत बटोगे, तो नफरत ही तो पाओगे,

जिन हाथों ने सिर्फ कुल्हाड़ी उठाना सीखा हो,

उस कुल्हाड़ी को त्याग कर तुम पेड़ कैसे लगाओगे।


सांस लेने के लिए जिनकी जरूरत होती है,

काट कर उन्हें तुम क्या जी पाओगे?

जानबूझ कर आंख पर पट्टी क्यों बांधी है?

जैसा बोया है, वैसा ही तो पाओगे।


खेलते रहे जीवन के साथ, परोपकार का मतलब ना समझे,

बिना किसी लालच के देना, तुम प्रकृति से न सीखे,

जिस धरती ने तुम्हें पाला, तुम उसको जलाओगे,

तो कैसे मांग सकते हो न्याय, जब अन्याय जताओगे।


हरी भरी जगमगाती दुनिया को,

जिस धूल धक्कड़ और ज़हर से भरा हो तुमने,

अपने कर्मों का हिसाब यहीं तो चुकाओगे,

जन्नत मांगी थी तुमने, अब अपने बसाए स्वर्ग से निकलकर कहां जाओगे?


मिटा कर वजूद दुनिया की खूबसूरती का,

तुमने सोचा तुम रोशनी के दिए जलाओगे,

समय अभी गुज़रा नहीं है, जो बचा है उसे संभाल जो लोगे,

तो हो सकता है नया सवेरा देख पाओगे।


क्यों डर रहे हो अपने आज से इस कदर,

जो हो रहा है तुमने ही तो बनाया है,

क्यों बेहाल हो दुनिया के हाल से,

जैसा बोया है, वैसा ही तो पाओगे।


Hindi Poetry "जैसा बोया है, वैसा ही तो पाओगे"

उम्मीद करती हूं आपको यह कविता पसंद आई होगी और आप इस कविता का उद्देश्य समझ गए होंगे।

कॉमेंट करके मेरे साथ अपने विचार साझा जरूर करिएगा।

ऐसी और कविताएं और कहानियां पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग से जुड़े रहें।


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