Hindi Poetry on Nature | Hindi Poems on Nature | हिंदी कविता
घर, दुनिया की सबसे महफूज और आरामदायक जगह, जहां पर दिल को सुकून मिलता है, तस्सली मिलती है, घर जहां अपनों का प्यार होता है, परवाह होती है, छोटी छोटी खुशियां होती हैं। कभी सोचा है कैसा हो अगर वही घर, वही आशियाना कहीं खो जाए?
हम सब आज अपने घरों में सबसे साथ महफूज रहते हैं, अपने परिवार के साथ, मगर जिस जमीन पर हमने बिना कुछ सोचे समझे घर, इमारतें और फैक्ट्रियां बना डाली कभी उस जमीन पर बसे घरों के बारे में सोचा है। जिनके घोंसलों को पेड़ के साथ उजाड़ दिया, कितने मासूम परिंदों का घर, उनकी जान छीन ली।
इसी हादसे का शिकार हुआ एक पंछी, जिसने अपने घर, अपने परिवार को खो दिया। जो शहर लोगो ने बसाया उसके नीचे उसका पुराना शहर दफन हो गया। खो गया उसका आशियां, उसका घर। अब वह पंछी अलग अलग दिशा में, अपने घरौंदे को ढूंढता फिर रहा है, उन यादों को ढूंढ रहा है, उन गुजरी अधूरी बातों को ढूंढ रहा है जो वक्त ने उससे छीन ली, इस बदलाव ने छीन ली, उसे अकेला कर दिया, भटकने पर मजबूर कर दिया। जो घर लौटना चाह रहा है, जो अपने साथियों, अपनों से मिलना चाह रहा है मगर एक तूफान ने, एक बदलाव की आंधी में वह सब उजड़ गया, खत्म हो गया।
इस कविता का मकसद आपको यही समझना है की हमारे बदलाव ने कितना कुछ तबाह किया है, कितनी जिंदगियों को उजड़ दिया है, कितने घरों को छीन लिया है। इंसान ने अपने स्वार्थ के लिए जो रास्ता चुना है उसने किस तरह के निशान किसी मासूम की जिंदगी पर डाले हैं।
उम्मीद करती हूं आपको इस कविता का उद्देश्य समझ आया होगा और आप जरूर इस बात पर गौर करेंगे। हम किसी का घरौंदा बचा नहीं सकते तो क्या किसी को एक घरौंदा दे तो सकते हैं।
Hindi Poetry | हिंदी कविता
"ढूंढने चला"
ढूंढने चला फिर एक बार,
कुछ खोए से शब्द, कुछ खोई सी यादें,
कुछ अधूरे अल्फाज़, कुछ मौसमी बरसातें,
ढूंढने चला, वो दूर उड़ चला,
एक परिंदा बेपरवाह फिर किसी ओर बढ़ चला,
कुछ खोजने की आस में,
कुछ पाने की उम्मीद में,
जो बदलाव आ गए थे,
उनके वजूद की तलाश में,
कहां पहुंचना है, कोई ठिकाना नहीं है,
एक खोया सा शहर था,
जिसको ढूंढने की चाह भरी है,
कुछ हाथ छूट गए थे,
जिनसे वादा किया था,
एक परिंदा खोज रहा था,
अपने घर वापस जाने के बहाने।
मेरे साथ अपने विचार जरूर साझा कीजिएगा।
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